दिल से दिल का अब वो रिश्ता नहीं रहा
चाहा तो बहुत मगर वो मेरा नहीं रहा,
माँगा था हरदम जिसको हमने दुआ में
वो मेरा हमसफ़र मगर मेरा नहीं रहा,
यूँ तो किया करता है मोहब्बत की बातें
अब मगर उसपे कोई भरोसा नहीं रहा,
रिश्ता था ऐतबार का कोई खेल तो नहीं
लगता है उसे मुझसे अब प्यार नहीं रहा,
करता था फिक्र जो मेरे हालातो की हरदम
अब उसी को मेरे हालातो का पता नहीं रहा,
बसाना था जिसके साथ आशियाना मुझको
मेरा वो आशिक, मेरा दिलबर नहीं रहा,
अब तो बसायेगा वो दुनिया किसी के साथ
अब अपना भी उससे कोई नाता नहीं रहा.