रास्ता भी ख़तम, धुप में शिदत भी बहुत थी.
साये से मगर उस को मुहब्बत भी बहुत थी.
खेमे न कोए मेरे मुसाफिर के जलाए,
ज़ख्मी था बहुत, पाऊँ मुसफित भी बहुत थी.
बारिश की दुआओं में नमी आंख की मिल जाए
... जज्बे की कबी इतनी रफाकात भी बहुत थी.
कुछ तो तेरे मोसम ही मुझे रास कम आये
और कुछ मेरी मट्टी में बगावत भी बहुत थी.
फोलों का बिकारना तो मुक़दर ही था लेकिन
.... कुछ इस में हवाओं की सियासत भी बहुत थी.
इस तर्क-ऐ-रफाकात पे परेशां तो हु
लेकिन अब तक के तेरे साथ पे हैरत भी बहुत थी...........
साये से मगर उस को मुहब्बत भी बहुत थी.
खेमे न कोए मेरे मुसाफिर के जलाए,
ज़ख्मी था बहुत, पाऊँ मुसफित भी बहुत थी.
बारिश की दुआओं में नमी आंख की मिल जाए
... जज्बे की कबी इतनी रफाकात भी बहुत थी.
कुछ तो तेरे मोसम ही मुझे रास कम आये
और कुछ मेरी मट्टी में बगावत भी बहुत थी.
फोलों का बिकारना तो मुक़दर ही था लेकिन
.... कुछ इस में हवाओं की सियासत भी बहुत थी.
इस तर्क-ऐ-रफाकात पे परेशां तो हु
लेकिन अब तक के तेरे साथ पे हैरत भी बहुत थी...........