पानी पे बना बुलबुला मुझको सिखा गया
जीने की नयी राह ये मुझको दिखा गया
पानी पे बना बुलबुला ...
कुछ नहीं से कुछ बना फूला सीना गर्व से
ताली बजी ...खुश हुआ तकते रहे सब उसे
उसे बड़ा बन जाने पे, अभिमान आगया
पानी पे बना बुलबुला ...
एक शिलापट्ट पे बड़ा इतरा रहा था वो
हवा के झोकों के संग नाच गा रहा था वो
अब सागर के संग न रहने का उसने मन बना लिया
पानी पे बना बुलबुला ...
दो चार छोटे बुलबुलों को उसने आमंत्रण दिया
उनका मत हासिल कर आन्दोलन किया
उन बुलबुलों को इसने पाठ नया पढ़ा दिया
पानी पे बना बुलबुला ...
उन्मत्त हवा का झोंका सब को सुखा गया
उस अभिमानी बुलबुले का नामोनिशान ना रहा
उसका रहम-ओ-करम है आगे हम जो बढ़ते आये हैं
चुनौतियाँ को पार कर चोटियाँ चढ़ते आये हैं
अहम् ना आने पाए कभी , फार्मूला टिका गया
पानी पे बना बुलबुला मुझको सिखा गया