FRENZ 4 EVER

Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Join-today-1


Join the forum, it's quick and easy

FRENZ 4 EVER

Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Join-today-1

FRENZ 4 EVER

Would you like to react to this message? Create an account in a few clicks or log in to continue.

Shayari, FREE cards, Masti Unlimited, Fun, Jokes, Sms & Much More...

Frenz 4 Ever - Masti Unlimited

Hi Guest, Welcome to Frenz 4 Ever

Birthday Wishes : Many Many Happy Return Of The Day : ~ Asexy, Bongsq, Callysta Pearl, CBandy, Dhess1111, Elizabethm, Kasak, Laurieali, Pennyphenmit, Rigs008.
Thought of The Day: "We aim above the mark to hit the mark." - Ralph Waldo Emerson

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Sat Dec 13, 2008 11:14 am

    जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
    कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
    जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

    जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
    मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
    हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
    हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
    कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
    आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
    फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
    मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
    क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
    जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
    जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
    जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
    जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
    कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
    जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

    मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
    मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
    जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
    उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
    जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
    उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
    क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
    यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
    अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
    क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
    वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
    जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
    यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
    जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
    जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
    जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
    कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
    जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

    मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
    है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
    कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
    प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
    मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
    पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
    नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
    अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
    मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
    कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
    ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
    केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
    जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
    लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
    इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
    जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
    कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
    जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Sat Dec 13, 2008 11:19 am

    मानव पर जगती का शासन,
    जगती पर संसृति का बंधन,
    संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा!
    साथी, सब कुछ सहना होगा!

    हम क्या हैं जगती के सर में!
    जगती क्या, संसृति सागर में!
    एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!
    साथी, सब कुछ सहना होगा!

    आओ, अपनी लघुता जानें,
    अपनी निर्बलता पहचानें,
    जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!
    साथी, सब कुछ सहना होगा!


    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Divide12
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Thu Feb 25, 2010 11:22 pm

    मधुशाला।

    - डॉ. हरिवंषराई बच्चन.

    मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
    प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
    पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
    सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला ।।१।

    प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
    एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
    जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
    आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला ।।२।

    प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
    अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
    मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
    एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला ।।३।
    roshini
    roshini
    Frenz Hero
    Frenz Hero

    Member is :
    Online Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Online
    Offline Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Offline


    Female

    Aries Buffalo

    Posts : 5370
    Job/hobbies : fashion designing
    KARMA : 75
    Reward : 176

    Mood : embarrassed

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by roshini Thu Feb 25, 2010 11:25 pm

    wowwwwwwwwwww cho chweet + k baba sehgal... Dancing Doll Dancing Doll Dancing Doll Dancing Doll
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Thu Feb 25, 2010 11:32 pm

    भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
    कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
    कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
    पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला ।।४।

    मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
    भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
    उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
    अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला ।।५।

    मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
    'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
    अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
    'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला। ।। ६।
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Thu Feb 25, 2010 11:33 pm

    thanx Rosh.... flowers I'll tyr to post entire "Madhushala" Here ...
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 12:08 am

    चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
    'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
    हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
    किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला ।।७।

    मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
    हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
    ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
    और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला ।।८।

    मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
    अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
    बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
    रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला ।।९।
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 1:36 am

    mere fevt poet ki poetry posting ke liye double +K+K
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 1:44 am

    Thanx buddy, Harivashrai sahab, ka me b boht bada fan hu... I m trying to collect his as much work as possible here.... Thums up
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 1:01 pm

    besabri se intezaar rahega dear
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 6:43 pm

    Raj bhai osam posts bhai
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 6:51 pm

    Thanx ashu... flowers
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 8:16 pm

    सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
    सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
    बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
    चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला ।।१०।

    जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
    वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
    डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
    मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला ।।११।

    मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
    अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
    पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
    इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला ।।१२।
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 8:19 pm

    हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
    अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
    बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
    पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला ।।१३।

    लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
    फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
    दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
    पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला ।।१४।

    जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
    जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
    ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
    जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला ।।१५।
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Feb 26, 2010 8:21 pm

    बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
    देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
    'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
    ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला ।।१६।

    धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
    मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
    पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
    कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला ।।१७।

    लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
    हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
    हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
    व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला ।।१८।
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Sat Feb 27, 2010 12:06 am

    bahut hi umda posting raj maan khus ho gaya padkar itne sunder shabdo ka istemaal aur kisi poetry me nahi milegi +k
    SourabhBasak
    SourabhBasak
    Administrator
    Administrator

    Member is :
    Online Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Online
    Offline Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Offline


    Male

    Capricorn Pig

    Posts : 5393
    I LiveHyderabad

    Job/hobbies : Storage Administrator
    KARMA : 197
    Reward : 613

    Mood : crafty

    F4e Status : Gham-e-Hayat ki tashreeh aur kya hogi,
    Diya jalakar tarasta hu Roshni ke liye..

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by SourabhBasak Sat Feb 27, 2010 7:23 pm

    Tooo good... + k for this dear....
    Baba wrote:
    मानव पर जगती का शासन,
    जगती पर संसृति का बंधन,
    संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा!
    साथी, सब कुछ सहना होगा!

    हम क्या हैं जगती के सर में!
    जगती क्या, संसृति सागर में!
    एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!
    साथी, सब कुछ सहना होगा!

    आओ, अपनी लघुता जानें,
    अपनी निर्बलता पहचानें,
    जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!
    साथी, सब कुछ सहना होगा!


    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Divide12
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Thu Mar 11, 2010 11:59 pm

    बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
    रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
    'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
    मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला ।।१९।
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Thu Mar 11, 2010 11:59 pm

    बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
    बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
    लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
    रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला ।।२०।
    Anonymous
    Guest
    Guest

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Guest Fri Mar 12, 2010 12:00 am

    बड़े बड़े पिरवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
    हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
    राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
    जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला ।।२१।

    Sponsored content

    Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!! Empty Re: Poetries by Shri.Harivash Rai Bachchan !!!

    Post by Sponsored content


      Current date/time is Fri Apr 26, 2024 8:55 pm